November 5, 2012

क्या हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं ???



क्या हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं  ???

लोगों को इस बात की बहुत बड़ी गलतफहमी है कि हिन्दू सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं | लेकिन ऐसा है नहीं, और सच्चाई इसके बिलकुल ही विपरीत है |
दरअसल हमारे वेदों में उल्लेख है 33 "कोटि" देवी-देवता | अब "कोटि" का अर्थ "प्रकार" भी होता है और "करोड़" भी!  तो मूर्खों ने उसे हिंदी में करोड़ पढना शुरू कर दिया | जबकि वेदों का तात्पर्य 33 कोटि अर्थात 33 प्रकार के देवी-देवताओं से है | (उच्च कोटि, निम्न कोटि इत्यादि शब्द तो आपने सुना ही होगा, जिसका अर्थ भी करोड़ ना होकर प्रकार होता है |)

ये एक ऐसी भूल है, जिसने वेदों में लिखे पूरे अर्थ को ही परिवर्तित कर दिया | इसे आप इस निम्नलिखित उदहारण से और अच्छी तरह समझ सकते हैं |

अगर कोई कहता है कि  बच्चों को "कमरे में बंद रखा" गया है | और दूसरा इसी वाक्य की मात्रा को बदल कर बोले कि बच्चों को "कमरे में बंदर खा गया" है | (बंद रखा = बंदर खा)

कुछ ऐसी ही भूल अनुवादकों से हुई अथवा दुश्मनों द्वारा जानबूझ कर दिया गया ताकि, इसे हाई लाइट  किया जा सके |

सिर्फ इतना ही नहीं हमारे धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफ उल्लेख है कि "निरंजनो निराकारो एको देवो महेश्वरः"  अर्थात  इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं, जो निरंजन निराकार महादेव हैं |

साथ ही यहाँ एक बात ध्यान में रखने योग्य बात है कि  हिन्दू सनातन धर्म मानव की उत्पत्तिके साथ ही बना है और प्राकृतिक है | इसीलिए हमारे धर्म में प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीना बताया गया है और  प्रकृति को भी भगवान की उपाधि दी गयी है ताकि लोग प्रकृति के साथ खिलवाड़ ना करें |

जैसे कि

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गंगा को देवी माना जाता है क्योंकि  गंगाजल में सैकड़ों प्रकार की हिमालय की औषधियां घुली होती हैं |

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गाय को माता कहा जाता है क्योंकि गाय का दूध अमृततुल्य और  उनका गोबर एवं गौ मूत्र में विभिन्न प्रकार की औषधीय गुण पाए जाते हैं |

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तुलसी के पौधे को भगवान इसीलिए माना जाता है कि तुलसी के पौधे के हर भाग में विभिन्न औषधीय गुण हैं |

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इसी तरह वट और बरगद के वृक्ष घने होने के कारण ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं और थके हुए राहगीर को छाया भी प्रदान करते हैं |

यही कारण है कि  हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रकृति पूजा को प्राथमिकता दी गयी है क्योंकि प्रकृति से ही मनुष्य जाति है, ना कि मनुष्य जाति से प्रकृति है |

अतः प्रकृति को धर्म से जोड़ा जाना और उनकी पूजा करना सर्वथा उपर्युक्त है | यही कारण है कि हमारे धर्म ग्रंथों में  सूर्य, चन्द्र, वरुण, वायु, अग्नि को भी देवता माना गया है, और इसी प्रकार कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैं |

इसीलिए, आपलोग बिलकुल भी भ्रम में ना रहें क्योंकि  ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं,  जो निरंजन निराकार महादेव हैं |

अतः कुल 33 प्रकार के देवता हैं |

12
आदित्य है -----> धाता, मित्,  अर्यमा, शक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा, एवं विष्णु |

8
वसु हैं ------> धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष, एवं प्रभाष |

11
रूद्र हैं ------> हर, बहुरूप, त्र्यम्बक, अपराजिता, वृषाकपि, शम्भू, कपर्दी, रेवत म्रग्व्यध, शर्व,  एवं कपाली |

2
अश्विनी कुमार हैं |

कुल ----- > 12 + 8 + 11 + 2 = 33

October 15, 2012

आजकल का बहुत ही प्रसिद्ध गाना फिल्म "चक्रव्यूह " से आपके किये कुछ चर्चित नए शब्दों के साथ: -
भैया देख लिया है बहुत तेरी सरदारी रे (ओ सरदार रे)
अब तो हमरी (आम आदमी) बारी रे ना……

महंगाई की महामारी ने हमारा भट्टा बिठा दिया

चले हटाने गरीबी, गरीबों को हटा दिया
सरबत की तरह देश को
सरबत की तरह देश को गटका है गटागट
आम आदमी की जेब हो गयी है सफाचट

भैया देख लिया है बहुत तेरी सरदारी रे (ओ सरदार रे)
अब तो हमरी (आम आदमी) बारी रे ना ...
भैया देख लिया है बहुत तेरी सरदारी रे (ओ सरदार रे)
अब तो हमरी (आम आदमी) बारी रे ना ...

बिरला (कलमाड़ी) हो या टाटा (सलमान), अम्बानी (राजा) हो या बाटा (वाड्रा)
सबने अपने चक्कर में देस को है काटा

बिरला (कलमाड़ी) हो या टाटा (सलमान), अम्बानी (राजा) हो या बाटा (वाड्रा)
सबने अपने चक्कर में देस को है काटा

अरे हमरे ही खून से इनका
इंजन चले धकधक
आम आदमी की जेब हो गयी है सफाचट
आम आदमी की जेब हो गयी है सफाचट

अब तो नहीं चलेगी तेरी ये रंगदारी रे
अब तो हमरी (आम आदमी) बारी रे न ...
अब तो नहीं चलेगी तेरी ये रंगदारी रे
अब तो हमरी (आम आदमी) बारी रे न ...

बजाओ भैया ढोलकी बजाओ डुगडुगी
बजाओ भैया ढोलकी बजाओ डुगडुगी
इनके कोर्ट कचहरी थाने करते झूठ केस पैमाने
इनके बटाईदार कानून करता गाँव गाँव में खून

हलवा समझ के घुस यह खाते हैं गपागप
आम आदमी की जेब हो गयी है सफाचट
आम आदमी की जेब हो गयी है सफाचट

अब तो नहीं चलेगी तेरी ये थानेदारी रे
अब तो हमरी (आम आदमी) बारी रे न ...

घर बेच दो अपना या बेच दो सपना
यह ना डकार लेंगे बस इतना याद रखना
अरे हमरे ही खून से इनका
इंजन चले धकधक
आम आदमी की जेब हो गयी है सफाचट
आम आदमी की जेब हो गयी है सफाचट

अब तो नहीं चलेगी तेरी ये रंगदारी रे
अब तो हमरी (आम आदमी) बारी रे न ...

अरे रे ... (ओ सरदार रे...)
नोट : - ऊपर के शब्द सिर्फ शब्द ही हैं किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं।

" मैं फिर से जीने जा रहा हूँ ... "

मैं फिर से जीने जा रहा हूँ, या यूँ कहे की फिर से लिखने जा रहा हूँ। मेरी अर्धांगिनी ने मुझे फिर से लिखने के लिए प्रेरित किया हैं। उनके कहे अनुसार मुझे उसके लिए लिखना चाहिए जो मेरे साथ हैं ना कि उसके लिए लिखना छोड़ देना चाहिए जिसने मुझे ही छोड़ दिया हो। सो, अब एक बार फिर से लिखना शुरू कर रहा हूँ।

पिछली सारी यादों को पुराने किसी डिब्बे में बंद करके घनी धुप में सुखा आया हूँ, जो अब मेरे घर की दुछती के पिछले हिस्से में रही हुयी हैं। कोशिश करूँगा की वो अब वही रहे।

जीवन में बड़ी जद्दोजहद के बाद कोई आया हैं जो मुझे मुझसे ज्यादा चाहता हैं। अब उसके और सिर्फ उसके  लिए जीने जा रहा हूँ।

January 10, 2011

आज के बाद मैं यहाँ मतलब इस ब्लॉग पे कुछ भी नहीं लिखुगा | दिल कि बातें दिल में रखो तो ज्यादा अच्छा हैं | ऐसा किसी ने आज कहा तो सोचता हूँ जब अब तक उसकी किसी बात को नहीं काटा हैं तो इस बात को कैसे काट दूँ | वैसे उसे अब तक ये नहीं लगा कि मैं उसकी बातों को मानता हूँ | सो हो सकता हैं कि वो अब इसे भी ना माने कि मैंने जीना छोड़ दिया हैं, क्योंकि लेखिनी ही तो हैं जिसने मुझे जिन्दा रखें हुए था | विचारों के बिना इंसान सिर्फ हाठ-मांस का पुतला ही तो हैं |
माफ़ी मांगता हूँ आप सबसे जो आज तक यहाँ मेरी लेखिनी को पढ़ने आते थे और जिन्होंने अब तक के सफ़र मेरा साथ दिया और मुझे जीने (लिखने) का होसंला दिया | 

June 25, 2010

अब तुमसे बातें नहीं हो पाती हैं | पर दिल आज भी तुमसे बातें करता हैं | ये बात दूसरी हैं कि वो सिर्फ दिल ही दिल में बातें करता हैं |

June 15, 2010

" वो पूछते हैं ... "

वो पूछते हैं ...
मुझ से
क्या हुआ हैं तुझे
क्यूँ जीने की चाह नहीं हैं
कुछ तो हुआ ही होगा
मैं सोचता हूँ
फिर कहता हूँ
न जाने उनसे या खुद से
पर कहता हूँ
कुछ भी तो नहीं हुआ
और जीने की चाह क्यूँ नहीं
हैं ना तभी तो जी रहा हूँ
कुछ भी तो नहीं हुआ
पर तभी दिल धीमे से
दिमाग से कहता हैं
झूठ बोल रहा हैं

June 12, 2010

पता नहीं मैं ही क्यों अब तक उसके बारे में सोच रहा हूँ| पता नहीं वो मेरे बारे में सोच रहा हैं या नहीं ? खैर वो सोच रहा हैं या नहीं, यह सोचने के लिए दिल ने मौका ही कहाँ दिया|

May 2, 2010

"मैं भी बड़ा जिद्दी किस्म का जानवर हूँ"

रात के ३ बजे रहे हैं और आँखे सोने की जिद्द करती-करती रोने लगी हैं| पर दिमाग या यूँ कहे की दिल हैं कि उसकी सुनता ही नहीं हैं| जाने क्यूँ पिछले तीन दिनों से यही हाल हैं| पहले दिन तो सोचा कि आखिर ऐसा क्यूँ हो रहा हैं| दुसरे दिन भी यही सोचता रहा कि मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ हो रहा हैं| आखिर क्यूँ ? ? ? मैं ही क्यूँ ? ? ? क्यूँ बुझ गया मेरा ही हर दिया ? ? ? जो भी मिला, उसे खोया मैंने ही क्यूँ ? ? ? जाने ऐसे और ना जाने कितने ही ऐसे सवालों का जवाब मांग रहा हूँ, मैं एक बार फिर| सोचता सोचता ना जाने कितना उलझ गया हूँ|

ग़म भी ना कैसा हैं कि साथ ही नहीं छोड़ रहा हैं| सब छोड़ गए हैं| पता नहीं इसे ही मुझ से कितना प्यार हैं कि साथ नहीं छोड़ रहा हैं| कम्बख्त जीने भी नहीं दे रहा और मरने भी नहीं दे रहा हैं| पर शायद इसे भी नहीं पता कि मैं भी बड़ा जिद्दी किस्म का जानवर हूँ| जो ठान लिया उसे कर के ही छोड़ता हूँ| पर क्या करू अभी तक कुछ ठाना ही नहीं हैं| और यह भी इसी का फायदा उठा रहा हैं| वैसे ये कर भी तो कुछ गलत नहीं रहा हैं| जो सबने किया हैं, वही ये भी कर रहा हैं| और मुझे भी अब तक इसकी आदत पड़ जानी चाहिए| पर गलतियों से तो इंसान सीखते हैं और मैं ठहरा जानवर|

ग़म के चुल्लू में ही डूब कर मर जाने कि सोचता हूँ| पर कम्बख्त ये भी नहीं करने दे रहा हैं| जब भी डूबने की कोशिश की हैं, साले ने चुल्लू ही नहीं बनाया| पर शायद इसे भी नहीं पता कि मैं भी बड़ा जिद्दी किस्म का जानवर हूँ| हा! हा! हा!......

May 1, 2010

"हैं कोई दवा"

मरने से डरने लगा हूँ, क्यूँकि कभी सुना था कि जिसकी कोई भी दिली तमन्ना अधूरी रह जाती हैं तो मरने के बाद उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती हैं और मेरी तो ना जाने कितनी ही अभी बाकी हैं| और मैं ये भी नहीं चाहता कि मरने के बाद तुम्हे परेशान करूँ| जीते जीते ना जाने तुमे कितना परेशान किया हैं| ऐसा तुम सोचते हो| मैं नहीं| वैसे भी मैंने तुमसे प्यार किया हैं, तुम्हे कैसे परेशान कर सकता हूँ| ये बात और हैं कि तुम्हे अब मेरा प्यार परेशानी लगने लगा हैं|

कल तक मेरे जिस प्यार की सब कसमें लिया करते थे| आज उसी प्यार से सब सबक ले रहे हैं| मुझे ग़म इस बात का नहीं कि तुमने मेरे प्यार की कद्र ना समझी| अब तो ग़म सिर्फ इस बात का हैं कि मेरे प्यार की वजह से कुछ लोगों का प्यार से विश्वास उठ गया| ग़म तो इस बात का हैं कि मैं उन्हें समझा भी नहीं सकता| क्यूंकि जिसके खुद के गिराबां में दाग हो, वो बोले भी तो किस मुहं से| ग़म तो इस बात का हैं कि मैं उनसे कैसे निगाहें मिला पाउगा, जिनसे मैं तुम्हे पाने के लिए लड़ पड़ा था| अब जब वो मुझ से मेरे प्यार का हिसाब मांग रहे हैं, तो मैं आधे बलि चढ़े मेमने सा गर्दन निचे गिराए, उनसे ज़िन्दगी की भीख मांग रहा हूँ| हूँ....|

हैं कोई दवा इन सब ग़मों का, आपके पास डॉ. साहिबा|

March 29, 2010

फ़िलहाल एम. टेक. के फ़ाइनल प्रोजेक्ट को लेकर कुछ ज्यादा ही वयस्त हूँ| इसी वजह से यहाँ कुछ खास लिख नहीं पा रहा हूँ|